खुली हुई किताब हूँ मैं, ज़िन्दगी के मेज पर पड़ी..
जब चाहो पढ़ सकते हो मुझे, सिर्फ प्यार की नज़र से...
Thursday, 24 September 2009
नहीं रहता ता-उम्र तक....
नहीं रहता ता-उम्र तक हमसफ़र कोई,
गर मालूम होता तो दिल को लुटाता न मैं.....
तरसना होगा मुझे बाद-ए-मौत भी दीदार को उनके,
खबर होती तो उनकी रह-गुजर में जाता न मैं........
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