मेरी शायरी..
खुली हुई किताब हूँ मैं, ज़िन्दगी के मेज पर पड़ी.. जब चाहो पढ़ सकते हो मुझे, सिर्फ प्यार की नज़र से...
Sunday, 27 September 2009
तम्मन्ना-ऐ-जुबान
"तम्मन्ना-ऐ-जुबान' तो है दिल में अभी भी,
पर 'खैर-ख्वाह' है वो जिसे सुनाना 'मुहाल' है मुझे...."
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