मेरी शायरी..
खुली हुई किताब हूँ मैं, ज़िन्दगी के मेज पर पड़ी.. जब चाहो पढ़ सकते हो मुझे, सिर्फ प्यार की नज़र से...
Saturday, 26 September 2009
आजकल.......
"बात करने में वो, 'इतराते' हैं आजकल,'
'नज़र' मिलाने से, 'घबराते' हैं आजकल,'
'न जाने अब क्या हो गया है उनको,'
'हर 'सच' से वो, 'कतराते' हैं आजकल......."
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