Monday 2 August 2010



गिला करते नहीं उनसे किसी भी बात पर,
अफ़सोस रहेगा हर पल अपने हालत पर.........
वो चाहे पुकारे या ना पुकारे मेरे नाम को कभी,
बस चुके हैं वो लकीरों की तरह मेरे हाथ पर.........

1 comment:

  1. बस गुलाम अली जी की गज़ल की दो पंक्तियां याद आ रही हैं .
    तू कहीं भी रहे सर पर तेरे इलज़ाम तो है
    मेरी हाथों की लकीरों में तेरा नाम तो है.....

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