खुली हुई किताब हूँ मैं, ज़िन्दगी के मेज पर पड़ी.. जब चाहो पढ़ सकते हो मुझे, सिर्फ प्यार की नज़र से...
बस गुलाम अली जी की गज़ल की दो पंक्तियां याद आ रही हैं . तू कहीं भी रहे सर पर तेरे इलज़ाम तो है मेरी हाथों की लकीरों में तेरा नाम तो है.....
बस गुलाम अली जी की गज़ल की दो पंक्तियां याद आ रही हैं .
ReplyDeleteतू कहीं भी रहे सर पर तेरे इलज़ाम तो है
मेरी हाथों की लकीरों में तेरा नाम तो है.....