Monday 26 October 2009



"लहरों को 'चकनाचूर' होते
देखा है अक्सर 'चट्टानों' से,
मुझे मालूम न था की इक दिन-
मेरे भी 'सपने'-
इसी तरेह चकनाचूर होकर 'बिखर' जायेंगे.....


मैंने तो अपने आप को समझाया,
की अब ये 'सपने',
कभी 'साकार' न होंगे,

पर ये 'कमबख्त' 'दिल' कहता है की-
 कभी न कभी आकर,
'वो' मेरे 'टूटे' हुए 'सपनों' को,
'नया रूप' देंगे..






"जब भी सुलझाना चाहा, ज़िन्दगी के सवालों को मैंने,
हर इक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गयी..."

Sunday 25 October 2009




"अब तो हर तरफ तन्हाई ही दिखती है,
चले गए हैं सब न जाने कहाँ छोड़ कर मुझे...."

Saturday 10 October 2009


"क्या क्या न सोचा था हमने,
की इस तरेह से ज़िन्दगी बिताएंगे,
पर मालूम न था हमें की
अगले ही मोड़ पर
अपनी ज़िन्दगी से ही धोखा खायेंगे....."



written by:- Dinky Mehta